नई सुबह तुम!
परिवर्तन
का
‘लिटमस-पेपर’
हो।
तुम
फसलों की कुसुमित बाली,
तुम
सूरज की ललकित लाली,
तुम
उपवन की नृत्य-नाटिका,
नई
हवेली, पुलकित डाली,
तुम
भँवरों की
गीत-कुंजिका,
तुम
‘लवलेटर’ हो।
तुम
पूजा में थाल, परोसा,
तुम
साँभर हो, इडली-दोसा,
तुम
जलेबियाँ, तली कचौड़ी,
गरम-गरम
हो बना समोसा,
तुम
ही ढाबा, तुम ही होटल,
तुम
ही ‘वेटर’ हो।
तुम
यति-गति-लय, तुम अभिधा हो'
सुख-दुख
और नई सुविधा हो,
सौम्य
शांत तुम, किरण-कुमुदिनी,
तुम
ऋतुओं की नय विविधा हो,
तुम
शब्दों का लाड़ प्यार हो'
‘केयर
टेकर’ हो।
--शिवानन्द
सिंह 'सहयोगी'
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