सब
सो जाएँ
सब
को गहरी नींद आए
किसी
को डरावना सपना नहीं आए
बुरे
से बुरे सपने में भी कोई किसी से नहीं बिछड़े..
न
कहीं धरती हिले
न
कहीं बादल फटे
न
कहीं ज्वालामुखी फूटे
किसी
की भी नींद नहीं टूटे
सब
की आँखें सुबह होने के बाद ही खुले
जब
सब की आँखें खुले तो शरीर में महान स्फूर्ति हो
जब
सब बिस्तर से उतरें तो पांवों के नीचे रेशमी कालीन हो
सब
की सुबह नई हो और दिन चमकदार हो और शाम रंगीन हो
और
कल जब रात आए
तो
किसी का मन नहीं करे कि फिर से सो जाएँ..
एक
अखंड जाग के हक़ में
हम
सब की ओर से
मेरी
यह प्रार्थना स्वीकार करो मेरे रामजी!
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मन मीत
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