शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

गज़ल

 

तू है बादल

तो,बरसा..जल

 

नींव में देखा

मीलों दलदल

 

एक शून्य को

कितनी हलचल

 

नन्ही बिटिया

नदिया कलकल

 

ज़ोर से चीखो

निकलेगा हल

 

नाम ही माँ का

है गँगाजल

 

तेरी यादें

महकेँ हरपल

 

औऱ पुकारो

टूटे साँकल

 

-लक्ष्मी शंकर वाजपेयी 

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