स्त्रियों
तुम सम्मान की सहभागी हो
सहनशील
ममता करुणा से पूर्ण
सतत
कार्यरत अनुरागी हो।
कुशल
गृहणी, निपुण व्यवसायी
सब
के मन को जानती हो, पर
ख़ुद को कहाँ पहचानती हो।
सेवा
सुश्रुषा में बीतता जीवन
अथक
परिश्रमी, स्नेह की पोटली
गरल
पी, अमृत
रस तुम बाँटती हो।
कुछ अमृत के घूँट बचा कर
अपना
जीवन सरस बनाओ
सम्मान
से जियेंगी अब स्त्रियाँ
सपने
को हक़ीक़त का रंग चढ़ाओ
छटक
के अवांछनीय अपमान के बादल
नव
युग का एक दीप जलाओ।
-मनवीन
कौर
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