पत्तों
के कंधों पर बैठी
सकुचाई
सी धूप.....
कुछ
फुनगी पर हैं अधलेटी
उन्मीलित
से नैन
मिली
हवा की छुअन यकबयक
मुखर
हो गए बैन
लगीं
झूलने अलगनियों पर
शैशव
लगे अनूप.....
बैठ
मुँडेरी पर बतियातीं
करतीं
मधुरिम हास
कहें
नीम की छाया से तुम
अभी
न आना पास
मुग्धा
वय है अभी; लाज है
उसके
ही अनुरूप.....
छुअन
रेशमी; तन हरारती
मखमल
सा अहसास
यौवन
आया घुला श्वास में
उष्मा
का परिहास
किरणों
का आँचल लहराती
अल्हड़ता
अभिरूप.....
दिखा
क्षितिज में श्यामल साया
पाँव
तले नम दूब
उतरी
गिरि से पग पखारने
गई
झील में डूब
रजनी
का छौना पछताया
मिली
न धूप अनूप.....
- सुधा
राठौर
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