गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

चाँद भी अब ख्वाबों में नहीं आता

 

नींद नहीं आती रात- रात भर और भला लगता है ,

दिन के शोरगुल में क्यूँ  सब बुरा लगता है? 

रात की खामोशी मानो प्रकृति के साथ होती है, 

दिन का वक्त तो  बस पेट की खातिर बिताते हैं। 

बियाबान और अंधेरों में भी गुफ्तगू होती है , 

पर पूरे- पूरे दिन खामोश बिता देते हैं।

आए हैं जहाँ  से लौट जायेंगे एक दिन ,

यह ताकीद हौसला बढ़ा देती है।

रहना होगा क्या ताजिंदगी यहाँ इस भीड़ में ,

 यह सोच कर बैचेनी सी उभर आती है।

कहाँ  बस में किसी के जो तय कर सके सब कुछ ,

लेकिन प्यार में गुजर कुछ और चला देती है।

यूँ  ही चलते चलते ही पँहुचे उस चश्मे तक , 

जो प्यास सारी उम्र की बुझा देते हैं ।

चाँद  भी अब ख्वाबों में आने से रहा ,

उसकी तस्वीर भी अब डरा देती है।

रोशनी की तलाश में भटकते हैं उम्र भर

आखिर में अंधेरे में ही आस दिखाई देती है। 

चलते -चलते भीड़ भरी राहों पर जिंदगी भर ,

खामोश सड़क ही सुकून दिला देती है!

नींद नहीं आती रात -रात भर....

लेकिन सुकून पूरा दिला देती है।


-    -अमिताभ शुक्ल

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