घरों में आलों और रोशनदानों का होना,
एक अहसास होता था,
जैसे कि, सबकुछ,
अपने आसपास होता था।
सहेजते थे रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें,
उन कीमती आलों में,
हर वक्त रोशनी और हवा का,
जरिया होते थे रोशनदान।
अब कहीं और रखने पर भी,
उतनी अहम नहीं लगती चीजें,
न खिड़कियां ले सकती हैं,
रोशनदान की जगह।
सचमुच पुरानी चीजें जिंदगी के साथ होती थीं,
बहुत आसपास होती थीं,
उनके जाने के साथ जिंदगी लगती है रीती सी,
बहुत कुछ छूट जाने का अहसास देती सी।
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