शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

उजाले की आस

आकाश में सुराख करने के लिए,

जज्बा जरूरी जोर से पत्थर उछालने का

कसक इतनी गहरी हो कि,

आह पहुँचे जल्लाद की छाती तक.

लेकिन, फिर भी वक्त लगता है,

आह को असर होने तक।

तब तक चलती हैं मनमानियाँ,

शैतानी कारनामें जारी रहते हैं।

कई शैतानों की सांठ- गांठ एक नई घटना है,

जो शुरू हुई है आधुनिक विकास के बाद

खुश हैं मदारी, कसाई और सारे वहशी इन दिनों,

दुकानें चल रहीं बहुत अच्छी इन दिनों

सिमट जाना भले लोगों का इशारा है शायद,

आने वाले बदलने वाले  वक्त का

नहीं सुनाई देती निरीहों की आवाजें,

भारी भीड़ और अट्टहासों के बीच

लेकिन, जंगल कब रहे सिर्फ जंगल?

और कब तक छाया रहता है कोहरा?

सुबह और उजाले की आस और उम्मीद,

यही है इंसान की सच्ची प्यास

जारी है संघर्ष उजाले के लिए,

न केवल घर में असर्फियाँ सजाने के लिए 

-अमिताभ शुक्ल 


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