गुरुवार, 18 जनवरी 2024

ग़ज़ल

सोच कोई पल रहा सघन है

आज बहुत विचलित ये मन है

 

बाहर बाहर शोर बहुत है

अन्दर अन्दर ख़ालीपन है

 

बार- बार सुधियों ने धोया

फिर भी मैला दिल दर्पण है

 

तुझसे नहीं शिकायत कोई

मेरी तो ख़ुद से अनबन है

 

सूरज सिर पर लिए खड़ा हूँ

पावों तले पर बहुत गलन है

 

शहरों में अपना अपना है

गाँव में अब भी अपनापन है

 

तेरे बन्दों के सुख दुख में

पूर्ण समर्पित ये जीवन है

-     डॉ .सुरेश अवस्थी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें