शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

उदासियों भरा रहा वर्ष 23

  

युक्रेन रूस युद्ध, आग की तरह की मंहगाई,

स्वजनों से जुदाई और कुछ  का बिछड़ना,

कोरोना फिर आने की खबरों का बार -बार आना,

राजनीति का सिर्फ आतंक मचाना।

ऐसे बीत गया बहुत भारी वर्ष 2023,

फुलझड़ियों की तरह आए बीच बीच में रेशमी पल,

पर वो बस रहे पल, न बन सके आज और कल,

उम्मीदें जितनी तेजी से आईं और जागीं,

उतनी ही तेजी से हुईं रफा-दफा।

न दर्द सिल पाए और,

न लग पाया घावों पर मरहम।

कुछ और नए जख्म उभर आए,

जिनकी टीस न मिटेगी अब उम्र भर।

फुलवारियों से रेगिस्तान और बियाबान की ओर जाती जिंदगी में,

 

सोचते ही रहे कुछ नए पुष्प आ जाएँ,

पर लगे हाथ कांटे ही कांटे,

लहूलुहान हुआ शरीर, दिल, दिमाग और आत्मा।

क्या बताएँ अब और इस गुजरते वर्ष की दास्तान ,

अब जिंदगी में और कुछ भले हो जाए,

इस मनहूस साल जैसा साल कभी न आए,

जिंदगी जीने को सुकून भरे कुछ वर्ष जरूर मिल जाएँ ।

 - अमिताभ शुक्ल

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