युक्रेन रूस युद्ध, आग
की तरह की मंहगाई,
स्वजनों से जुदाई और कुछ का बिछड़ना,
कोरोना फिर आने की खबरों का बार -बार
आना,
राजनीति का सिर्फ आतंक मचाना।
ऐसे बीत गया बहुत भारी वर्ष 2023,
फुलझड़ियों की तरह आए बीच बीच में
रेशमी पल,
पर वो बस रहे पल, न
बन सके आज और कल,
उम्मीदें जितनी तेजी से आईं और जागीं,
उतनी ही तेजी से हुईं रफा-दफा।
न दर्द सिल पाए और,
न लग पाया घावों पर मरहम।
कुछ और नए जख्म उभर आए,
जिनकी टीस न मिटेगी अब उम्र भर।
फुलवारियों से रेगिस्तान और बियाबान की
ओर जाती जिंदगी में,
सोचते ही रहे कुछ नए पुष्प आ जाएँ,
पर लगे हाथ कांटे ही कांटे,
लहूलुहान हुआ शरीर, दिल, दिमाग
और आत्मा।
क्या बताएँ अब और इस गुजरते वर्ष की
दास्तान ,
अब जिंदगी में और कुछ भले हो जाए,
इस मनहूस साल जैसा साल कभी न आए,
जिंदगी जीने को सुकून भरे कुछ वर्ष
जरूर मिल जाएँ ।
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