निकली है आखेट खेलने
लेकर हवा कटार
शूल चुभोए हाड़ कँपाए
धावक ऐसी तेज
स्वेटर, शॉल दुशाले बैरी
रहे न मानीखेज
कंबल और रजाई लगते
निष्ठुर पहरेदार
सिगड़ी चूल्हों की बन आयी
जलते कहीं अलाव
उष्म कवच पहनाने निकला
निष्क्रिय धूप प्रभाव
हीटर ए सी हुए निकम्मे
झेलें सर्द प्रहार.....
सड़कें सूनी सन्नाटे की
मुखरित है आवाज़
हिम के जेवर पहने निकली
सर्द हवाएँ आज
गर्म- गर्म हों चाय पकौड़े
घर-घर यही पुकार.....
नयी फसल का स्वाद दिलाए
अपरिमित सन्तोष
स्वास्थ्यवर्धिनी ऐसी रुत है
स्वयंमेव परितोष
सेहत का अनमोल खजाना
लायी सर्द बहार.....
वर्षा जब बन जाती बैरी
करती है विध्वंस
गर्मी की रितु कष्ट दायिनी
विचलित मानस-हंस
लेकिन सबसे सुखद सुहावन
ठण्डी का किरदार.....
-सुधा राठौर
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