मंगलवार, 13 फ़रवरी 2024

भटकना नियति है


यायावरी एक अभिशाप या वरदान है,

पूर्व जन्म का लिखा हुआ काम है।

बताइए भला कौन भटक सकता है उम्र भर ?

बिना एक छाँव के ,पड़ाव के।

खानाबदोश भी बसने लगे हों जब एक गाँव में ,

बसाने लगे हों रोजगार एक ठाँव पर

तब भी भटकते रहे कोई ,

यह कैसा भाग्य है?

कई जन्मों के नक्छत्रो का काम है।

ऋतुएँ बदलें या वर्ष ,

शीत , ग्रीष्म हो या वर्षा ।

इस तरह भटकना भी एक काम है,

जिसमें मिलता अनुभवों का खजाना है।

  - अमिताभ शुक्ल

 

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