घर
की याद सताती
है।
आँखों
तक आ जाती
है।
देखो! बादल
की रूमाल
आँचल - सी लहराती
है।
कभी-कभी ये दिल की आग
पानी
में लग जाती
है।
मेरी काली तनहाई
कुछ
रंगीन बनाती है।
समझ नहीं आता ! यह दिल!
दूल्हा है? बाराती है?
बिना
हवा के प्यार-पतंग
फूँकों से
उड़ जाती है।
गोरा
हो या काला
हो
हर
बादल बरसाती है।
इक
जंजीर हवा की
है
साँसों को
समझाती है।
अब
मेरा पीछा छोड़ो!
दिल
से भूल हो
जाती है!
मैं
वो किश्ती हूँ
लोगों
जो
तूफ़ान उठाती
है!
नाच नाचता
रहता है
मीरा
तो खो जाती
है!
हिंदी वालों !
देखो तो!
कविता यूँ
हो जाती है!
एक
बला चूरू की
हूँ
जो
'मनमीत' कहाती है!
-
मन मीत
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