झुर्री वाली मुखाकृति से
ताक रहा है कौन
आकृति कुछ कहती हैं
शब्द मगर हैं मौन
श्वेत वर्ण में उसके सारे
रिश्ते सिमट गए हैं
एकाकी आँखों से लेकिन
बहता रहता नोन
दीप बुझ गए हैं आँखों के
चुका आस का तेल
शिला हो रही हृदय में साँसे
होने को है मौन
गठरी बन वह झूल रही है
झूले -सी खटिया में
हर आहट सुन चरमर स्वर की
पूछा करती.. कौन ?
-सुधा राठौर
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