प्रेम समय के साथ बदलता है
प्रेम
अपनी जगह बदलता देता है
प्रेम
अपनी त्वचा बदलता है
परंतु
प्रेम होना समाप्त नहीं होता
प्रेम
खाल और मांस के बीच भ्रमण करता है
हृदय
तक आती धमनियों में रक्त प्रवाह की तरह
प्रेम लय को बदल देता है
औचित्य
को बदल देता है
बदलता
है जीवन ,फिर बदलती है आदत
आदत
जिसमें दुःख की छाया होती है
बिछड़े
हुए प्रेमिल की समयावधि बताती है
हमारा
आंतरिक मन अतिअनुरागी
वसंत
के साथ नहीं रह सकता
मुझे
जब भी तुम पर प्रेम आया
अटूट
आया
मैं
महसूसती हूँ प्रेम आग्रह की
औपचारिकता
से कोसों दूर है
नदी
के किनारे सुनसान सड़कों पर चलने से
तुम
तक नहीं आया जा सकता
मेरे
शहर की नदी तुम्हारे शहर तक नहीं जाती
प्रेम
फिर समय के साथ बदलता है
यह
अपनी त्वचा बदलता है,
लय
को बदलता है
लेकिन
प्रेम का अंत नहीं होता है
प्रेम
खाल और मांस के बीच भ्रमण करता है
प्रेम
अक्सर रुप बदलकर आता है
किसी
दूसरे समय में लौटकर।
- ज्योति शर्मा
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