बुधवार, 27 मार्च 2024

मेरे राम लला

 


राम लला  का   रूप , मनोहर  सौम्य  सलोना।

नज़र नहीं  लग  जाय , लगाऊँ  एक  डिठौना।।


बालक छवि अभिरूप , अधर मुस्कान मनोहर।

उन्नत  संस्कृति  भाल ,   समेटे  दीप्त  धरोहर।।

 

मुख वैभव अति सौम्य , कांति ज्यों निश्छल बालक।

महिमा   अपरंपार , बने   जगतारण  पालक।।


सुगढ़  नासिका; पुष्ट , देह  नवनीत  सुचिक्कन।

लंबी  ग्रीवा; भौंह , सुदृढ़ जिसमें हित- चिंतन।।

 

कमल  नयन में  शील , भंगिमा  नम्र  विनीता।

समदर्शी  है   दृष्टि समाहित  भाव   पुनीता।।

 

रत्नजड़ित है मुकुट , शीश पर चढ़ इठलाता।

दिनकर भी स्वयंमेव , भोर प्रभा  संग लाता।।

 

रेख- रेख  हर कोण , मुखर; अन्तस का दर्पण।

वह भव बन्धन मुक्त , करे जो तन- मन अर्पण।।

 

घुंघराले   से   केश, समेटें  जग   की   पीड़ा।

हैं  रेशम  की  भाँतिमगर फिर भी लें बीड़ा।।

 

ज्यों  सरोज की पाँख, अधर- पुट लाल गुलाबी

जब  रहते   हैं  मौन, दिखें  किंचित  महराबी।।

 

चन्दन  तिलक लला, गंध केसर  की  महके।

दिव्य अलौकिक आभ, चहुँदिसि, लह-लह लहके।।

 

हस्ती  सम   हैं  कर्ण , अबोला  भी  सुन  लेते।

ब्रह्मा-ध्वनि स्वर-नाद, सकल तत्क्षण गुन लेते।।

 

कुण्डल आकृति  व्योम , परिक्रमा मानों करती।

नभ-जल-थल-पाताल, चराचर बीच  विचरती।।

 

वक्ष  सुदीर्घ  विशाल , कण्ठ  से  झूले   माला।

हीरक द्युति अनिमेष , स्वर्ण दमके झलकाला।।

 

कटि करधन बड़भाग, धन्य मोतिन की लड़ियाँ।

छूकर  गुन  लेतीं , मोक्ष  की  निश्चित  कड़ियाँ।।

 

हैं   बलिष्ठ  भुजदण्ड , मुलायम नर्म  उँगलियाँ।

सोहें  कंगन  चार विहँसती   रहें   मुँदरियाँ।।

 

पग पैंजन झनकार , ध्वनित होती है जब-जब।

उर्जा  नव- चैतन्य , प्रवाहित  मनु में तब- तब।।

 

श्याम  बरन  है  गात , लुनाई मृदुतम मुखपर।

कर  दे भव से  पार , दर्श  है  ऐसा  सुखकर।।

 

किस बिध अंतस-बाह्य, रूप का होय बखाना।

वो सागर निःसीम , 'सुधाइक  मीन  समाना।

 

- सुधा राठौर

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