गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

प्रतीक्षा

 

कब उगेगा दिन, तुम्हारे आगमन का

मैं बहुत दिन से प्रतीक्षा कर रहा हूँ

कब कोई आकार होगा इस सपन का

मैं बहुत दिन से प्रतीक्षा कर रहा हूँ

 

मैं युगों से रोज़ लिख-लिखकर संदेशे

बादलों के हाथ भेजे जा रहा हूँ

शुद्धतम जल से चरण धोऊँ तुम्हारे

आँसुओं को भी सहेजे जा रहा हूँ

कब मुझे अवसर मिलेगा आचमन का

मैं बहुत दिन से प्रतीक्षा कर रहा हूँ

 

'भोर की पहली किरण पर आओगे तुम'

-रात से हर रात ये ही कह रहा हूँ

सूर्य का उत्साह ठण्डा पड़ रहा है

और मैं भीतर ही भीतर दह रहा हूँ

हँस रहा मुझ पर हर इक तारा गगन का

मैं बहुत दिन से प्रतीक्षा कर रहा हूँ

 

चौखटों का नूर बुझने लग गया है

देहरी की आँख पथराने लगी है

बेर की हर डाल चुभने लग गयी है

मालती की देह कुम्हलाने लगी है

हो रहा नीरस निरंतर स्वर सृजन का

मैं बहुत दिन से प्रतीक्षा कर रहा हूँ

 

कौन जाने एक दिन मेरी कथा का

अंत, शबरी की कथा जैसा रहेगा

या निरन्तर बढ़ रही इस पीर का पथ

सिर्फ़ राधा की व्यथा जैसा रहेगा

बेर हूँ मैं या सुमन हूँ कुंजवन का

मैं बहुत दिन से प्रतीक्षा कर रहा हूँ

 

                   -चिराग़ जैन

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