रंग
शौर्य का
है वसंत
मत खो जाना मधुमास में
और
न सम्मोहित होना
पियूष पुष्प दल हास में.....
उठे
नहीं कातर पुकार
अंक लगाना आत्म व्यथा
पीर
भी पतझर बनेंगी
लिखना स्वयं की रितु कथा
व्योम
मुट्ठी में उसी के
है धैर्य जिसके पास में.....
मुश्किलें
निष्ठुर भले हों,
क्रुद्ध कंटकबद्ध राहें
पुष्प
क्षण भर की दिलासा,
थामते हैं शूल बाँहें
नियम
प्रकृति का समदर्शी,
जीवन लक्ष्य विन्यास में.....
चेतना
हो सजग दृग में
कर्तव्य के स्वर मुखर हों
रोक
लें यदि विषमताएँ
साधनाएँ भी प्रखर हों
अमिय
नहीं मधुपान प्रिये
क्यों बोझिल विलास में.....
राह
अनचीन्ही को अडिग,
मील का पत्थर बनाना
दान
में अधिकार क्यों लें,
मान हित क्यों सिर झुकाना
पाश
क्षमता का सुदृढ़, फिर
प्रभहीन क्यों विश्वास में.....
- सुधा राठौर
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