बुधवार, 10 अप्रैल 2024

ऋतुराज

 

बाग की सब क्यारियों के हाथ पीले हो गए हैं

फूल की हर पाँखुरी के ओंठ गीले हो गए हैं

श्वास में सरगम सजाता साज आया है

लग रहा है द्वार पर ऋतुराज आया है

 

साँस में बहकी हवाओं का नशा सा घुल रहा है

प्रीति की बारिश हुई है, ज्ञान सारा धुल रहा है

पर्वतों को खुशबुओं ने प्यार से छू भर लिया है

वज्र सा अड़ियल हिमालय भी अभी हिल-डुल रहा है

ज्ञानियों के ज्ञान से मन बाज आया है

लग रहा है द्वार पर ऋतुराज आया है

 

दल भ्रमर का बूटियों के पास मंडराने लगा है

कोयलों ने गीत गाए, आम बौराने लगा है

ठूँठ से लिपटी हुई है एक दीवानी लता तो

बाग का वीरान कोना, बाग कहलाने लगा है

दम्भ होकर प्रेम का मोहताज आया है

लग रहा है द्वार पर ऋतुराज आया है

 

गुनगुनी सी धूप के संग बेल-बूटों का प्रणय है

प्रेमियों को हर नियम के टूट जाने पर अभय है

ठंड से ठिठुरी धरा अंगड़ाइयाँ लेने लगी है

श्वेत छितरी बदलियों के बीच सूरज का उदय है

मोतियों के थाल में पुखराज आया है

लग रहा है द्वार पर ऋतुराज आया है

 

      - चिराग़ जैन

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