शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

गीत

 

बादल के संग आँखमिचौली

दिवस खेलता जाय

उष्मा को फुसलाकर बैरन

शीत कहर बरपाय.....

 

ओढ़े मेघ दुशाला छुपकर

दिनकर करता राज

धूसर मुख छवि धुँधली काया

अदृश्य स्वर्णिम ताज

है उदास प्राची उजास बिन

पाखी मौन धराय.....

 

दूर्वा के अधरों पर ठिठकीं

मोती जैसी ओस

सिकुड़ गए सब पेड़ द्वेष से

रहे सूर्य को कोस

बाट जोहते उष्मा लेकर

शायद दिन चढ़ आय.......

 

पुरवाई की प्रत्यंचा पर

सर्द हवा के तीर

लील गई किरणें दिनेश की

धुंध बड़ी बेपीर

भरी दुपहरी शाम घिरे तो

पहर- समय भरमाय.....

 

रात ओस से भीगी भीगी

हिम सा सर्द प्रभात

नमी हवा की हाड़ कँपाती

ठिठुरा जाए गात

बादल ने षड्यंत्र रचाया

कुहरा बना सहाय.....

 

-    सुधा राठौर


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